Wednesday, January 2, 2019

साँसे बचाए रखना

सागर पार से कितनी आवाज़ें दीं-
इंतज़ार करना…..
साँसे बचाए रखना .
शमा जलाए रखना ,
आस बनाए रखना .
गहराई और अथाह जल…….
लहरों का सैलाब ,
सागर में ज़्यादा था
या
आँखों से बहते
आँसुओं के लहरों में.
कुछ समझ नहीं आया .
बहते दर्द के सैलाब से धुँधली आँखें
कुछ देख नहीं पाई.
और इंतज़ार बस इंतज़ार रह गया …….

बिना ग़लती की सज़ा

ना जाने क्यों कभी कभी
किसी दिन
यादें बड़ी बेदर्द हो जातीं हैं.
बार बार  कर यातनाएं दे जातीं  हैं।
जब लगता है,
शायद अब सब ठीक है।
तभी ना जाने कहाँ से एक छोटी सी
सुराख़ बनायादों की  कड़ी…….जंजीर बन जाती है।
बिना ग़लती की सज़ा दे जाती हैं.

Sunday, September 18, 2016

रौशन जहाँ -कविता

POSTED IN

golden

माँ के गर्भ में अजन्मा शिशु अपने 

को सुरक्षित समझ ,बाहर आने पर 

रोता हैं.

इस दुनिया को अपना घर मान 

इंसान भी , इसे छोड़ने के 

डर से रोता हैं.

क्यों यह नहीँ सोचता ?

आगे रौशन  और भी “जहाँ ” हैं.





मोक्ष -कविता

POSTED IN

नचिकेत और यम का संवाद

Kathy Upanishad   was written by achary  Kath. It is legendary story of a little boy, Nachiketa who meets Yama (the Indian deity of death). Their conversation evolves to a discussion of the nature of mankind, knowledge, Soul, Self and liberation.

आचार्य कठ ने  उपनिषद रचना की।  जो कठोपनिषद  कहलाया।  इस में  नचिकेत और यम के बीच  संवाद का  वर्णन है । यह मृत्यु रहस्य और आत्मज्ञान की चर्चा है।



विश्वजीत  यज्ञ किया  वाजश्रवा ने ,

सर्वस्व दान के संकल्प के साथ।

पर कृप्णता से दान देने लगे वृद्ध गौ।

पुत्र नचिकेत ने पिता को स्मरण कराया,

प्रिय वस्तु दान का नियम।

क्रोधित पिता ने पुत्र  नचिकेत से कहा-

“जा, तुझे करता हूँ, यम को दान।”

नचिकेत  स्वंय  गया यम  के द्वार ।

तीन दिवस  भूखे-प्यासे नचिकेत के

प्रतिबद्धता से प्रसन्न यम ने दिया  उसे तीन वर ।

पहला वर  मांगा -पिता स्नेह, दूसरा -अग्नि विद्या,

तीसरा – मृत्यु रहस्य और आत्मा का  महाज्ञान।              

और जाना आत्मा -परमात्मा , मोक्ष का गुढ़ रहस्य.

यज्ञ किया पिता ने अौर महाज्ञानी बन गया पुत्र ।


जिंदगी के रंग - कविता 8

POSTED IN


life

जिंदगी ने ना जाने कितने रंग बदले।

रेगिस्तान  के रेत की तरह

कितने निशां बने अौर मिटे

हर बदलते रंग को देख ,

दिल में तकलिफ हुई।

काश,  जिंदगी इतनी करवटें  ना ले।

पर , फिर समझ आया ।

यही तो है जिंदगी।

मैं एक लड़की ( कविता 1 )



इस दुनिया मॆं मैने
आँखें खोली.
यह दुनिया तो
बड़ी हसीन
और रंगीन है.

मेरे लबों पर
मुस्कान छा गई.
तभी मेरी माँ ने मुझे
पहली बार देखा.
वितृष्णा से मुँह मोड़ लिया

और बोली -लड़की ?
तभी एक और आवाज़ आई
लड़की ? वो भी सांवली ?

जहाँ खारा पानी बिकता है

 #mumbaislum ( कविता )

वह भी रहती हैं वहाँ

जहां खारा पानी बिकता है।

दरिद्र, पति परित्यक्ता,

दस बच्चों के साथ,

दशकों पुरानी अपनी

बावड़ी का जल  बाँट कर

कहती है –“ पानी बेच कर क्या जीना?

क्या पूजा सिर्फ मंदिरों और मस्जिदों में ही होती है ?

यह इबादत का  उच्चतम सोपान नहीं है क्या?

 (मुंबई, मानखुर्द बस्ती में जहाँ गर्मी में लोग पानी खरीद रहे हैं। वहाँ ज़रीना अपनी पुरानी बाबड़ी का द्वार सभी के लिए खोल रखा है। ) news from daily – HINDU, pg – 2 dated may 12 2016.